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“गलत फैसला”: मंत्री ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर जताई कड़ी आपत्ति

Smt. Annapurna Devi assumed charge as the Union Minister for Women and Child development, in New Delhi on June 11, 2024.

नई दिल्ली: केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले की कड़ी निंदा की है, जिसमें कहा गया कि किसी महिला के स्तन को पकड़ना और उसकी पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार नहीं बल्कि कपड़े उतारने के इरादे से हमला करना माना जाएगा।

इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए अन्नपूर्णा देवी ने इसे “गलत” करार दिया और सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर संज्ञान लेने की अपील की। उन्होंने चेतावनी दी कि “ऐसे फैसले समाज में गलत संदेश देंगे।”

यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा के आदेश के बाद आई है, जिसमें उन्होंने दो आरोपियों के पक्ष में फैसला सुनाया और निचली अदालत द्वारा उन पर लगाए गए बलात्कार के आरोपों को खारिज कर दिया।

विपक्ष और महिला नेताओं की नाराजगी

इस फैसले के बाद महिला संगठनों और नेताओं में जबरदस्त नाराजगी देखी जा रही है।

तृणमूल कांग्रेस की सांसद जून मालिया ने कहा, “यह बेहद शर्मनाक है। महिलाओं के प्रति इस तरह की सोच बदलनी होगी।”

आम आदमी पार्टी की सांसद और पूर्व डीसीडब्ल्यू प्रमुख स्वाति मालीवाल ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण और चौंकाने वाला फैसला है। मैं समझ नहीं पा रही हूं कि अदालत ने ऐसा तर्क कैसे दिया। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।”

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 10 नवंबर 2021 का है। पीड़िता के अनुसार, वह अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ अपने रिश्तेदार के घर से लौट रही थी, जब गांव के तीन युवक—पवन, आकाश और अशोक उनके पास पहुंचे।

पवन ने पीड़िता की बेटी को बाइक से घर छोड़ने की पेशकश की, जिस पर महिला ने भरोसा कर लिया। लेकिन रास्ते में आरोपी ने बेटी को रोक लिया और महिला पर हमला कर दिया।

पीड़िता के मुताबिक, पवन और आकाश ने उसके स्तनों को जोर से पकड़ लिया, आकाश ने उसे culvert के नीचे खींचने की कोशिश की और उसकी पायजामे की डोरी तोड़ दी। यह हमला तब रुका जब दो लोग महिला की चीखें सुनकर वहां पहुंचे। इसके बाद आरोपी देसी कट्टा लहराते हुए भाग निकले।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित फैसला

इस मामले में निचली अदालत ने आरोपियों को IPC की धारा 376 (बलात्कार) समेत अन्य धाराओं के तहत तलब किया था। लेकिन आरोपियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।

जस्टिस मिश्रा ने अपने फैसले में कहा:

“केवल स्तनों को पकड़ने और निचले कपड़े उतारने की कोशिश करने से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि आरोपियों की मंशा बलात्कार करने की थी।”

अदालत ने “तैयारी” और “वास्तविक प्रयास” के बीच अंतर बताते हुए कहा कि इस मामले में बलात्कार की कोशिश का कानूनी आधार नहीं बनता।

फैसले पर देशभर में आक्रोश

इस फैसले के बाद पूरे देश में गुस्सा देखा जा रहा है। महिला अधिकार कार्यकर्ता और नेता सुप्रीम कोर्ट से अपील कर रहे हैं कि इस मामले पर तुरंत संज्ञान लिया जाए और पीड़िता को न्याय दिलाया जाए।

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