हिमाचल प्रदेश की शराब नीति राज्य की सामाजिक, स्वास्थ्य और आर्थिक ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। इसका मुख्य उद्देश्य शराब के उत्पादन, बिक्री और उपभोग को नियंत्रित करते हुए, जिम्मेदार खपत को बढ़ावा देना और सरकार के लिए राजस्व जुटाना है। यह नीति हिमाचल प्रदेश आबकारी अधिनियम, 2011 पर आधारित है, जिसे समय-समय पर समाज की बदलती जरूरतों के अनुसार संशोधित किया गया है।
पहले शराब नीति का फोकस अवैध कारोबार को रोकने और नशे की सामाजिक हानियों को सीमित करने पर था। लेकिन अब यह नीति एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर, कानूनी बिक्री को बढ़ावा देते हुए सामाजिक सुरक्षा को भी सुनिश्चित कर रही है।
हाल के प्रमुख बदलाव
पिछले एक वर्ष में सरकार ने नीति में कई सुधार किए हैं। सबसे अहम कदम था — सिंगल टेंडर सिस्टम लागू करना, जिससे ठेकों की बिक्री में बड़ी बढ़ोतरी देखी गई। उदाहरण के लिए, कांगड़ा में 19 लाख रिजर्व प्राइस वाला ठेका 88 लाख में बिका। इससे ठेकेदारों की मोनोपॉली भी टूटी है।
शराब की कीमतों और टैक्स संरचना में भी बदलाव किया गया है, जिससे सरकार को अधिक राजस्व मिलने लगा है और बाजार भी संतुलित हुआ है। साथ ही, नए नियमों के तहत नाबालिगों को शराब से दूर रखने के लिए नियम और सख्त किए गए हैं, जैसे लाइसेंस पर निगरानी, प्रचार-प्रसार पर नियंत्रण आदि।

मुख्य चुनौतियाँ
शराब नीति लागू करने में सरकार को कई चुनौतियाँ भी झेलनी पड़ रही हैं।
• कई जिलों में अवैध शराब की बिक्री और नाबालिगों द्वारा सेवन अब भी एक गंभीर समस्या है।
• जनजागरण की कमी के चलते ग्रामीण इलाकों में शराब की सामाजिक स्वीकार्यता बनी हुई है।
• राजस्व पर निर्भरता इतनी अधिक है कि कठोर नियंत्रण उपायों से सरकार की आमदनी प्रभावित हो सकती है।
• स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्टों के अनुसार, कुछ क्षेत्रों में शराब की लत तेजी से बढ़ रही है, जिससे सामाजिक व पारिवारिक ढांचे पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
भविष्य की दिशा और सुझाव
भविष्य में एक संतुलित और प्रभावी शराब नीति के लिए निम्नलिखित उपाय सहायक हो सकते हैं:
• शराब के विज्ञापन और प्रचार पर कड़ा नियंत्रण।
• स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता अभियान, ताकि युवाओं में जिम्मेदार सोच विकसित हो सके।
• सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शराब-मुक्त वातावरण को बढ़ावा देना।
• जनसुनवाई और पंचायत स्तर पर जागरूकता संवाद, जिससे समाज को साथ लेकर नीति बनाई जा सके।
• रीहैबिलिटेशन (नशा मुक्ति) सेवाओं का विस्तार और उन्हें अधिक सुलभ बनाना।
सरकार अगर इन सुझावों को अपनाती है तो हिमाचल प्रदेश में एक ऐसी शराब नीति विकसित हो सकती है जो जनस्वास्थ्य, सामाजिक संतुलन और आर्थिक लाभ तीनों का बेहतर समन्वय कर सके।